आजकल जरा जल्दी में है ज़िन्द्गगी
पलक झपको और वो चली
पहले थोड़ा थम के थी ये चलती
हंसती, रोती, कभी मुस्काती, ठाहके लगाती
सूरज की पहली किरण थी ये दिखाती
और कभी रातों के तारे भी
चिडिओं के चहचाने की आवाज़ थी सुनाती
और कभी सन्नाटों के साये भी
आजकल ज़रा जल्दी में है ज़िन्दगी …
करने देती थी ये यारों से बातें
गाहे बगाहे मुलाकातें, बटीं नहीं थीं दिन और रातें
वक़्त की कम थीं बंदिशें
रिश्तों में कम थीं रंजिशें
रोज़ नए गीत थी ये सुनाती
और हम भी थे गाते
वैभव का भले ना था अट्टहास
खुश होते थे हम, आते जाते
आजकल ज़रा जल्दी में है ज़िन्दगी….
चलो आज मिलकर इससे बातें करते हैं
ज़रा ज़िन्दगी से उसका हिसाब करते हैं
क्यूँ नहीं करती ये रफ़्तार कम
क्या वाकई इससे यही चाहते थे हम
चलो आज पुरानी ज़िन्दगी को वापस ले आतें हैं
कुछ नहीं तो छीन लेतें हैं कुछ मस्ती कुछ सुकून के पल
जाने कहाँ ज़िन्दगी ले जाये कल….